*INDIA CRIME न्यूज क्या कनाडा ‘खालिस्तान’ है?
क्या कनाडा खालिस्तानी देश बन गया है?*
*खालिस्तान समर्थक गुंडों और अतिवादियों ने जिस तरह दो हिंदू मंदिरों में घुस कर उत्पात मचाया। हिंसा में महिलाओं और बच्चों तक को नहीं छोड़ा। हिंसा के ऐसे सिलसिले जारी रहें, कनाडा के हिंदू मंदिरों पर हमले बढ़ते रहें, प्रधानमंत्री ट्रूडो खालिस्तानी अतिवादियों के खिलाफ एक भी शब्द न बोलें, कार्रवाई करना तो दूर की कौड़ी है, तो उस देश को क्या मानेंगे? जब 2021 में ट्रूडो तीसरी बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका, तो उन्हें खालिस्तान समर्थकों के सहारे ही सरकार बनानी पड़ी। कनाडा में खालिस्तानी निरंकुश होते गए और सरकार में उनका दखल बढ़ता रहा। खालिस्तानी गुंडों ने गौरीशंकर, जगन्नाथ, विष्णु, लक्ष्मीनारायण और रामधाम आदि मंदिरों पर हमले किए। दैवीय समेत महात्मा गांधी की प्रतिमाओं को तोड़ा, गोलीबारी की और हिंदुत्व को अपमानित किया। कनाडा में करीब 9.5 लाख हिंदू रहते हैं। अधिकतर कनाडा के ही नागरिक हैं। जाहिर है कि वे अल्पसंख्यक भी हैं। आश्चर्य है कि कनाडा समेत अमरीका, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया सरीखे बड़े देश इन हमलों के मद्देनजर न तो हिंदुओं के मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते हैं और न ही खालिस्तानी अतिवाद की भर्त्सना करते हुए कनाडा का विरोध करते हैं। इन सभी देशों के साथ भारत के ‘रणनीतिक साझेदार’ के संबंध हैं और रहे हैं। यदि ऐसी ही हिंसा भारत में हो जाए, तो सभी पश्चिमी देश मुसलमानों और ईसाइयों के सामाजिक मानवाधिकारों का प्रलाप करने लगेंगे। भारत को नसीहत देने लगेंगे और कुछ चेताएंगे भी। सवाल यह है कि कनाडा में खालिस्तान के हमलावर समर्थकों को हिंदुओं से ऐसी नफरत क्यों है कि वे मंदिरों पर लगातार हमले कर रहे हैं और श्रद्धालुओं के साथ मारपीट भी करते हैं? ऐसी कोई परंपरागत दुश्मनी भी नहीं है। दोनों समुदाय मूलतरू भारतीय हैं।
सिखों की मानसिकता तो धर्मनिरपेक्ष है और अधिकतर सिख ‘खालिस्तान’ के पक्षधर और समर्थक भी नहीं हैं। बीते रविवार को जो हंगामा हुआ, हिंसा की गई, उसमें भारत के राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगे’ का भी कुचल-कुचल कर अपमान किया गया। खालिस्तान न तो कोई देश है, न ही उसका कोई संविधान है और न ही उसका कोई अधिकृत झंडा है, लेकिन कनाडा की पुलिस खालिस्तान के कथित झंडे की ऐसी सुरक्षा कर रही थी मानो वह मान्यता प्राप्त देश का राष्ट्रीय ध्वज हो! उस झंडे के लिए हिंदुओं को हडक़ाया जा रहा था कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है। बहरहाल ‘वैश्विक मानव स्वतंत्रता सूचकांक’ में कनाडा का स्थान 13वां है। धार्मिक आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को वहां बड़ा महत्व दिया जाता रहा है। फिर ये हिंदू पूजास्थलों पर हमले और हिंसा क्यों किए जा रहे हैं? दरअसल भारत-कनाडा के राजनयिक रिश्ते इतने बिगड़ चुके हैं कि दोनों देशों ने, अन्य देश के, राजनयिकों को देश से निकाल दिया। दोनों ने अपने-अपने उच्चायुक्तों को भी वापस बुला लिया। भारत ने उनकी सुरक्षा के संदर्भ में ट्रूडो सरकार पर भरोसा नहीं किया। कनाडा ने भारत को उस श्रेणी के देशों में डाल दिया है, जिसमें ईरान और उत्तरी कोरिया जैसे देश हैं। क्या खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से ही दोनों देशों के संबंध इतने बिगड़े हैं? कनाडा आज तक एक भी सबूत नहीं दे पाया है कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसियों का हाथ था।
बल्कि अमरीका ने भी बार-बार भारत से आग्रह किया है कि वह कनाडा की जांच में सहयोग करे, लेकिन खालिस्तानी अतिवादियों की हिंसा के संदर्भ में अमरीका कनाडा को कोई परामर्श नहीं देता कि मानवीय हिंसा नहीं होनी चाहिए। अमरीका में कथित खालिस्तानी आतंकवादी पन्नू खुलेआम सक्रिय है। अमरीका उसे वकील और बौद्धिक-सामाजिक शख्सियत करार देता रहा है। ‘आतंकवादी’ को लेकर अमरीका समेत पश्चिमी देशों और भारत की परिभाषाएं भिन्न हैं। बहरहाल इन घटनाओं पर भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है- ‘हिंदू मंदिरों पर जानबूझ कर किए गए हमलों की मैं कड़ी निदा करता हूं। हमारे राजनयिकों को धमकाने की कायरतापूर्ण कोशिशें भी भयावह हैं। ऐसे कृत्य भारत के संकल्प को कमजोर नहीं कर पाएंगे। उम्मीद है कि कनाडा की सरकार न्याय सुनिश्चित करेगी।’ भारत ने कभी खालिस्तान को स्वीकार नहीं किया, बल्कि उसके उग्रवाद के घुटने तोड़ दिए। कनाडा को भी सद्बुद्धि आनी चाहिए कि सत्ता ऐसे तत्त्वों के सहारे लंबे समय तक नहीं चला करती। वहां की सरकार बार-बार ऐसी हरकतें कर रही है, जिससे भारत के हितों को आघात लगता रहा है। हमारे विदेश मंत्री ने कनाडा सरकार से इन मसलों को उठाकर उसे खरी-खरी सुनाई है, पर कनाडा सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। अब कोई ठोस कार्रवाई की जानी चाहिए और उसके साथ संबंधों को नए सिरे से व्याख्यायित किया जाना चाहिए।