*INDIA CRIME NEWS उत्तराखंड में अप्रैल की जगह फरवरी में ही खिलने लगे बुरांस,गलोबल वामिंग पर पर्यावरणविदों ने जताई चिंता*

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*INDIA CRIME NEWS उत्तराखंड में अप्रैल की जगह फरवरी में ही खिलने लगे बुरांस,गलोबल वामिंग पर पर्यावरणविदों ने जताई चिंता*

*वैज्ञानिकों ने पर्यावरणीय असंतुलन का बताया संकेत
कम बर्फबारी पर पानी को लेकर दी चेतावनी*

देहराूदन। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बुरांस और फ्यूंली या फ्योंली के फूलों का समय से पहले खिलना एक गंभीर पर्यावरणीय विषय बनता जा रहा है। हर साल की तरह इस बार भी बुरांस के फूल फरवरी माह में ही खिलते हुए दिखाई देने लगे हैं। वनस्पति वैज्ञानिकों का कहना है कि मौसम परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह सब हो रहा है। इससे प्राकृतिक चक्र में असामान्य बदलाव देखे जा रहे हैं। एक तरफ इन फूलों का खिलना लोगों के लिए खुशी की बात है, तो वहीं वनस्पति वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के लिए यह चिंता का विषय है। क्योंकि यह पर्यावरणीय असंतुलन का संकेत हो सकता है।

बुरांस और फ्यूंली के फूल आमतौर पर गर्मी के मौसम में खिलते हैं, लेकिन कुछ वर्षों से यह बदलाव देखने को मिल रहा है कि ये फूल फरवरी महीने में ही खिलने लगे हैं। यह वनस्पतियों पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाता है जो प्राकृतिक तंत्र को बाधित कर रहा है।
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के चलते पौड़ी और आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में मौसम के बदलने के कारण इस बार बर्फबारी में भी कमी देखी जा रही है और इस साल ठंड भी अपेक्षाकृत कम महसूस हुई है। यह स्थिति वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के लिए एक चिंता का विषय बन रही है। पौड़ी में पहले जहां सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी होती थी, अब इसमें भी कमी आ रही है। बर्फबारी का घटना न सिर्फ पर्यावरणीय संतुलन को प्रभावित कर रहा है, बल्कि क्षेत्र की जलवायु, कृषि और जल स्रोतों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। बर्फबारी से मिलने वाला पानी गर्मियों के दौरान जल स्रोतों को भरता था जो खेती की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिलता था। अब इस पानी की कमी का असर गर्मियों में स्थानीय जीवन और कृषि पर साफ दिखाई देने लगा है।

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